Sunday, April 4, 2010

हम अपनी शरण में जाकर स्वंय को पहचान सकते हैं,व्यक्तित्व में बदलाव भी ला सकते हैं।प्रायःजो बीज जिस गुण धर्म का होता है,जमीन में बोये जाने पर अपने गुण धर्म को ही प्रस्फूटित करता है,बबूल का बीज बोकर आम प्राप्त नही किया जा सकता है।लेकिन वही बबूल बीज अपने आप को पहचान ले तो अपनी स्वभाव को बदल सकता है उस बीज से आम प्राप्त नही होगा और उसकी तितिक्षा मिट जायेगी।लेकिन बबूल बीज सदा ही दूसरे पर आश्रित रहता है इसलिये वह प्रयास भी नही कर सकताहै।जबकि मनुष्य विचारवान है,अपने में विद्यमान राग का त्याग कर सकता है फलतः अपने आप में आमूल परिवरतन कर सकता है।जब तक हम दूसरे पर आश्रित रहेंगे हमारा संस्कार,जाति संस्कार, रूप रस संस्कार बंधे रहेंगे।लेकिन जब हम अपनी शरण में जायेंगे तो अपने संस्कार जाति रूपरंग को त्याग सकते हैं।यही त्याग ही हमें रागरहित कर सकता हैऔर तभी हम परिवर्तित हो सकते हैं,हम अपनी प्राण को पहचानने वाला संतमहापुरूष की श्रेणी में आ सकते हैं,अपनी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं हमारा स्वभाव साधु की हो सकती है,क्योंकि साधु व्यक्ति नही होता जो चित ईर्ष्या द्वेष कलह से वंचित होता है वही साधु होता है वही पिन्ड दर्शन कर सकता है अपने में ब्रह्मांड का दर्शन कर सकता है ईश्वरीय गुणों को आत्मसात कर सकता है।

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