Friday, October 2, 2009

श्री गुरूवे नमः श्री गुरू शरणमं
जो पिन्ड मे है वही ब्रह्मांड मे है।योगमत,शैवमत,प्राचीन वैदिक विराट कल्पना वौद्धिक वैष्णव मत का ऐकीकरण का प्रतीक है। ईसके अनुसार परम तत्व का वास्तिवक रुप शून्य पुरूष व ब्रह्म,शिव व शक्ति है जिसका आवास मनंग गोचर है।उसी ने जगत को बनाया है, विराट पुरूष के रुप मेशून्य पुरूष का ज्योति स्वरुप है, वही आदि ब्रह्म भी है जो बिन्दु ब्रह्म के रुप मे भौतिक रुप धारण कारता है। बिन्दु ब्रह्म से निवृत दो रुप रा ऐवं म मे दो अछर मे निहित होता है जो क्रमशः राधा व कृष्ण,पुरुष व प्रकृति मे परिणित होकर नित्य लीला मे लीन रहता है।

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