Sunday, October 25, 2009

पिन्ड मे ही ब्रह्मान्ड है।

पिन्ड मे ही ब्रह्मान्ड है।
नियामक व सृष्टा परम शिव ही दृष्टि की ईच्छा होने सगुण है।इससे दो तत्व शिव व शक्ति उत्पन्न होते हैं।शक्ति पूणॆ रुपेण स्फुरित अवस्था को प्राप्त करने में ४ स्थितियाँ निशा,परा,अपरा,सूछ्म,से गुजर कर कुन्डलिनी शक्ति के रुप मे विकसित होती है जो शिव के पांच अवस्थाओं का प्रतीक है।कुन्डलिनी शक्ति स्थूलता की ओर बढने से तीन स्फूरित तत्व सदाशिव अहं ईश्वर इदं व शूद्ध विधा अहं+इदं निमित होता है।अहं की पांच अवस्थओं परमानन्द,प्रबोधचित,उदय प्रकाश,व सोहं की आनन्दो से शरीर बनता है।शिव ही शक्ति के सयोंग से इस जगत का रूप बदलता है,उसी प्रकार प्रत्येक पिन्ड उसी प्रक्रिया से गुजरता हुआ अपने स्वरुप में आता है जिससे ब्रह्मान्ड बना हैऔर सत्व रज तम,काल व जीव की अधिकता व न्यूनता के कारण भेद प्रकट होता है।यही सिद्धांत जो पिन्ड मे है वही ब्रह्मान्ड मे है प्रतिपादित होता है।

Friday, October 2, 2009

श्री गुरूवे नमः श्री गुरू शरणमं
जो पिन्ड मे है वही ब्रह्मांड मे है।योगमत,शैवमत,प्राचीन वैदिक विराट कल्पना वौद्धिक वैष्णव मत का ऐकीकरण का प्रतीक है। ईसके अनुसार परम तत्व का वास्तिवक रुप शून्य पुरूष व ब्रह्म,शिव व शक्ति है जिसका आवास मनंग गोचर है।उसी ने जगत को बनाया है, विराट पुरूष के रुप मेशून्य पुरूष का ज्योति स्वरुप है, वही आदि ब्रह्म भी है जो बिन्दु ब्रह्म के रुप मे भौतिक रुप धारण कारता है। बिन्दु ब्रह्म से निवृत दो रुप रा ऐवं म मे दो अछर मे निहित होता है जो क्रमशः राधा व कृष्ण,पुरुष व प्रकृति मे परिणित होकर नित्य लीला मे लीन रहता है।