Saturday, November 28, 2009

भक्ति

भक्ति.....श्रद्धा के साथ ह्रदय से ईश्वर के प्रति उदगार प्रकट करना ही भक्ति है।यह उस परमात्मा के प्रति प्रेम है। दुख के समय,लालच से,मांगने के लिये दिखायी गयी उदगार भक्ति नही है।यह ह्रदय की निरमल उदगार है जो स्वतःप्रस्फुटित होती है अन्यथा यह शब्द मात्र है।भक्ति ही एकमात्र वह संबल है जो मनुष्य को सन्तुष्टि और निरभयता प्रदान करता है। मन को भक्ति की तरफ जागाने के लिये प्रयास करना प‍डता है,क्योंकि इन्सान को निम्न पांच कारक असयमं, आवेश, प्रमाद, आलस,तृष्णा खोखला करता है,मन को एकाग्र एवं ईश्वरानुभूति होने नही देता है।लेकिन यदि हम सेवा भाव को जगायें तो यह ग्यान कि ब्रृद्धि कर भक्ति का मारग अवलम्बित करता है,बैराग्य को जगाता है।भक्ति जगाने के लिये अगली कडी निष्ठा है।यह वह संजीवनी है,जो भक्तिरस का संचार करता है।निष्ठावान ब्यक्ति शिकायती नही होता,प्रमादी नही होता,स्वाभिमानी होता है।ईश्वर को अपनी कमियों,परिस्थितियों की उलाहना न देकर,धन्यवाद देता है और यही धन्यवाद ग्यापन ही निष्ठा जागृत करता है।निष्ठा जागृत होने पर प्रेम का उदय होता है,जो भक्ति का अगला तत्व है।प्रेम से सराबोर ब्यक्ति हिसंक नही हो सकता है,शिकायती नही हो सकता है,माथे पर शीतलता रहती है,दिमाग सन्तुलित रहता है।वह उदासीन भाव से,दृष्टा के रूप में,संसार की गतिबिधियों को संचालित हुए देखता है,अपने को करता नही मानता है।हम अपने को करता तभी मानते हैं जब हम अपेछा करते हैं।अपेछा हमारे मन में संग दोष उत्पन्न कारता हैऔर संग दोष से कामविकार उत्पन्न होता है।विकार की पूरति न होने से क्रोध और क्रोध से सरबनाश होता है।लेकिन जब हम इसकी उपेछा करते हैँ तो यह उदासीन भाव जागृत करता है जो संतुलित एवं नियत्रित जीवन जीना सिखाता है,प्रभुकृपा को प्राप्त करा सकता है।दृष्टि बदलने से सृष्टि बदलती है।गिलास में आधा पानी भरा या खाली कहा जा सकता है।भरापन संतुष्टि प्रदान करेगा जबकि खालीपन दूसरों से तुलना कर दुःख अनुभव करायेगा।हम स्वंय के मित्र सखा ,शूभचिन्तक नही रह सकेंगे।द्वन्द युक्त होंगे।जबकि द्वन्दमूक्त होकर ही परमात्मा से लगाव बनाये रख सकते हैं।द्वन्दमूक्त हम तभी हो सकते हैँ जब विभिन्न समस्याओं के प्रति लड़ने के बदले हँसते हुए झेल लें।मन में अन्दर महाभारत भी मची हो तो बाहर मुख पर बुद्ध की तरह शांतिभाव बनाये रखने का प्रयास करें।इसके लिये हमें ब्यवस्थित योजनाबद्ध ढ़ंग से जीना सिखना पड़ेगा।यदि हम दुसरे दिन शांति चाहते हैँ तो रात को सोते समय ही अगले दिन की रूपरेखा बनाने की कोशिश करें,जैसे यात्रा मे जाने के पहले ब्यवस्था करते हैं।सुबह उठते ही ईश्वर को याद कर नित्यकरम को प्रेरित हों।प्रातःकाल का समय भक्तिगीत,संगीत से शांतिमय वातावरण बनाये रखने का प्रयास करें,कदापि कोलाहल न हो,तनावयुक्त काम या विचार न लायें।सुबह जब परमेश्वर से जुड़ेंगे तो हमारी शुरूआत शांतिमय होगी,जिससे दिन और रात भी।रात में सोने से पहले ईश्वर को धन्यवाद दें,दिन की क्रियाकलापों पर नजर डालें कि कहाँ त्रुटिरह गयी।फिर दूसरे दिन की तैयारीकरेँ।निश्चय ही अनुशासन आयेगा, संतुलित होंगे,द्वन्दमुक्त होंगे।हमपर परमात्मा की कृपा होगी,पुरूषारथ फलित होगा एवं हम संतुलित जीवन जी सकेंगे।